जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
दुनिया के सफ़र पर
एक-एक करके गुज़रते हैं दिन,
एक-एक करके मास।
झरते जाते हैं फूल-पत्ते, छिपते जाते हैं पंछी,
जीवन मुरझकर होता है नाश।।
नॉर्वे का कार्यक्रम ख़त्म होने के हफ्ते-भर वाद, पुर्तगाल में 'इंटरनेशनल पार्लियामेंट ऑफ राइटर्स' सम्मेलन है। मुझे उन दोनों कार्यक्रमों में शामिल होना है। अभी तक मेरे हाथ में कोई कागज-पत्तर नहीं आया। सारा कुछ गैवी ग्लंइसमैन के पास यानी स्वीडिश पेन क्लव के ज़िम्मे। मुझे बताया गया है कि सफ़र में मेरे साथ होंगे, यूजीन शुलगिन ! साढ़े छह फुटिया लंवू, लंबा-चौड़ा मर्द! उनका जन्म नॉर्वे में हुआ, लेकिन दो दशकों से स्वीडन में बस गए हैं। वे लेखक हैं, नॉर्वेजियन भापा में लिखते हैं। स्वीडन और नॉर्वे की भाषा में उतना ही फर्क है, जितना बांग्ला और असमिया में।
नॉर्वे-सफ़र भी खासा अद्भुत रहा। मुझे हवाई अड्डे के अन्दर ले जाया गया। मरी गाड़ी सीधे रन-वे तक जा पहुँची। जहाज के अन्दर जाने के लिए गाड़ी के सामने ही एक सीढ़ी लगा दी गई। मेरा सूटकेस चेक-इन कराने के लिए पुलिस की एक टुकड़ी हवाई अड्डे की तरफ चली गई। पुलिस की वही टुकड़ी उस सूटकेस को दुवारा लादकर ले आई और उन लोगों ने खुद ही उसे जहाज के पेट में लूंस दिया यानी सूटकेस को भी हवाई अड्डे के निजी सुरक्षा नियमों में शामिल नहीं किया गया। उसके बाद कुत्तों समेत पुलिस का जत्था जहाज के अंदर दाखिल हुआ और कुत्ते ओना-कोना सँघकर यह पड़ताल करते रहे कि कहीं किसी जगह बम तो नहीं छिपाया गया है। तमाम मुसाफिरों को जहाज में पहले ही बिठा दिया गया था। जहाज सिर्फ मेरे इंतज़ार में खड़ा था। चार बॉडीगार्ड मुझे लेकर जहाज में सवार हो गए। फर्स्ट क्लास में सीट। उस क्लास में किसी और यात्री के लिए वैठना निषिद्ध था। मेरे सभी बॉडीगार्ड की जेब में पिस्तौल मौजूद! ये लोग एक साथ ही मुझे वेवकूफ और क्रूर नज़र आते हैं। वे लोग मुझे वेवकूफ इसलिए लगते हैं कि जो बात मेरी समझ में आती है, इन लोगों की अक्ल में नहीं आती कि नॉर्वे या स्वीडन में मेरी हत्या के इरादे से कोई बैठा हुआ नहीं है। बांग्लादेश में मुल्लों की दौड़ मस्जिद तक है। हाँ, उनकी दौड़ के लिए राजनीतिज्ञों ने ही रास्ता-घाट चौड़े कर दिए हैं, संसद में भी उन लोगों के लिए लाल कालीन विछा रखी है, लेकिन उन लोगों के हाथ-पाँव इतने लंबे नहीं हैं कि उत्तरी यूरोप की अली-गली में मुझे खोज निकालेंगे और इन लोगों के हिफ़ाज़ती हवाई अड्डे में घुसकर उससे भी ज्यादा सुरक्षित जहाज में, मेरी हत्या कर देंगे। वैसे मुसलमान यहाँ भी वसते हैं, लेकिन जैसे और चाहे जो करें, खून करने जैसा भयंकर कोई काम नहीं करेंगे। इस हरकत के लिए जैसे दुस्साहस की ज़रूरत होती है, वह इन लोगों में हरगिज नहीं है। ये लोग प्रमुख रूप से आर्थिक सुख-सुविधा के लिए पश्चिमी देशों में आ बसे हैं। यहाँ के अधिकांश मुसलमान अपने परिवार-परिजनों के साथ सुरक्षित ढंग से जीना चाहते हैं।
टिकट हिलाते-डुलाते, अचानक मेरी नजर उसमें छपे नाम पर पड़ गई। मेरे नाम की जगह लिखा हुआ था-एभा कार्लसन!
मैंने बगल में बैठे यूजीन को ही धर दबोचा, “देखो, ग़लत नाम लिखा है।"
"नहीं, नाम लिखने में गलती नहीं हुई। अब तुम्हारा यही नाम है। सुरक्षा कारणों से ही यह सब किया गया है।" यूजीन ने जवाब दिया।
मुझे इसका जवाब इसलिए वेहद निर्मम लगा कि मैं कहाँ हूँ? कैसी हूँ? जिंदा हूँ या मर गई हूँ? इस देश में क्या मैं साँस ले पाती हूँ? मुझे कौन-कौन-सी परेशानी या असुविधा है, यहाँ का कोई प्राणी, यह जानने की कोशिश नहीं करता। मुझे भयंकर उदासी ने निगल लिया है, यह देखकर भी, किसी की भौंहों पर वल नहीं पड़ता। मारे दुःख और शोक के मैं भले ही खुदकुशी कर लूँ, कोई हर्ज नहीं, बस, कोई मुल्ला मेरा खून न करे। यही मूल वात है। इससे ज़्यादा निष्ठुरता और क्या हो सकती है?
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